अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय महाविद्यालय नगरदा में जनजाति समुदाय का गौरवशाली अतीत ऐतिहासिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक योगदान पर एकदिवसीय कार्यशाला का किया गया आयोजन
ब्लाक रिपोर्टर सक्ती- उदय मधुकर
शहीद नंद कुमार पटेल विश्वविद्यालय रायगढ़ से संबद्धता अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय महाविद्यालय नगरदा में महाविद्यालय स्तर पर जनजाति समुदाय का गौरवशाली अतीत ऐतिहासिक सामाजिक और आध्यात्मिक योगदान पर एक दिवसीय कार्यशाला का 14 नवंबर को किया गया आयोजन।। जिसमें मुख्य अतिथि माननीय श्रीमती विद्या सिदार(जिला पंचायत सदस्य एवं शहिद नाम कुमार पटेल विश्वविद्यालय के कार्य समिति के सदस्य),विशिष्ट अतिथि माननीय डॉक्टर खिलावन साहू(पूर्व विधायक विधानसभा शक्ति), श्रीमती भुवनेश्वरी कंवर(जनपद सदस्य जनपद पंचायत शक्ति)श्री जागेश्वर सिदार( पूर्व सरपंच ग्राम पंचायत नगरदा) वक्तागण श्रीमती उषा कंवर, श्रीमान लक्ष्मण दास मानिकपुरी, प्राचार्य अध्यक्षता डॉक्टर के पी कुर्रे, अन्य अतिथिगण करमचंद सिदार(उपसरपंच), श्री सी.आर. सिदार (प्राचार्य शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नगरदा), और अन्य उपस्थित अतिथि गण द्वारा भारत माता, भगवान बिरसा मुंडा ,रानी दुर्गावती ,एवं वीर नारायण सिंह की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलित कर पूजा अर्पण श्री फल तोड़कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात राजकीय गीत का महाविद्यालय छात्र-छात्राओं द्वारा अरपा पैरी के धार प्रस्तुत किया गया। स्वागत भाषण में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉक्टर केपी कुर्रे द्वारा अतिथि गणों का भाषण स्वागत किया और जनजाति नायकों के साहस त्याग और बलिदान का नमन किया और जनजाति गौरवशाली इतिहास के बारे में संक्षिप्त में जानकारी दिए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्रीमती विद्या सिदार जी अपने उद्बोधन में जनजाति जनजाति समुदाय के संस्कृति कला की पहचान के बारे में बताएं एवं उसके जल जंगल जमीन के चुनाव और प्रकृति के बीच में सामंजस्य स्थापित करने की समर्थकता को बताएं और साथ ही जनजातियों के कला,संस्कृत प्रथा ,परंपरा के बारे में विस्तार से जानकारी दी भगवान बिरसा मुंडा के बारे में उनके त्याग बलिदान साहस के बारे में आने वाले पीढ़ी को बताएं और उन्होंने किस प्रकार ब्रिटिश औपनिवेशिक साम्राज्य के प्रति विद्रोह को बिगुल फूंका था। डॉ खिलावन साहू नेआज जनजातीय समाज के गौरवशाली इतिहास को दुनिया के सामने लाने की जरूरत है ताकि हमारी पीढिय़ाँ हमारे पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास को जान सके और अपनी सभ्यता संस्कृति परम्परा पर गर्व कर सके। हमारे देश में आदिवासी समाज का गौरवशाली अतीत है। इस समाज ने ऐतिहासिक सामाजिक एवं आर्थिक योगदान से देश को परिपुष्ट किया है यह समाज वीरों एवं वीरांगनाओं की बलिदानी गाथा से उर्वर है। हमें जनजातीय समाज की पुरातन परम्पराओं एवं ज्ञान को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है जिससे भावी पीढ़ी जनजातीय समाज की सामाजिक पृष्ठभूमि से अवगत हो सके । जनजातियों के एकदम योगदान को याद करने के लिए कहा।।लक्ष्मण दास मानिकपुरी ने अपने उद्बोधन में समय ने करवट बदल लिया है, अब अधिकांश जनजातीय समाज मौखिक शिक्षा अंधविश्वास कुरीतियों से ऊपर उठकर लिखित एवं वाचिक शिक्षा की परम्परा का निर्वाह कर अपने उद्देश्य में सफल होकर नित नयी ऊँचाइयों का स्पर्श कर रहे हैं। लेकिन अभी भी कुछ जनजातीय समाज को वक्त के धारे के साथ चलकर मौखिक शिक्षा से ऊपर उठकर लिखित एवं वाचिक शिक्षा की परम्परा बनानी होगी, इससे हमारे आदिवासी समाज का देश हित में किए गए अद्वितीय योगदान की जानकारी पूरी दुनिया को हो सके। श्रीमती उषा कंवर जी ने अपने उद्बोधन में बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 के दशक में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुगना पुर्ती (मुंडा) और माता का नाम करमी पुर्ती (मुंडा) था। साल्गा गाँव में प्रारंभिक पढ़ाई के बाद वे चाईबासा (गोस्नर इवेंजेलिकल लुथरन चर्च) विद्यालय में पढ़ाई करने चले गए। बिरसा मुंडा को उनके पिता ने मिशनरी स्कूल में यह सोचकर भर्ती किया था कि वहाँ अच्छी पढ़ाई होगी लेकिन स्कूल में ईसाईयत के पाठ पर जोर दिया जाता था।19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हथियारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह ‘उलगुलान’।श्री जागेश्वर सिंह सिदार जी ने अपने उद्बोधन में जनजाति समुदाय के गौरवशाली इतिहास के बारे में बहुत से जनजाति नायकों बिरसा मुंडा,रानी दुर्गावती,तिलका मांझी,रम्पा राजू इत्यादि नायकों के योगदान को याद करते हुए उनके द्वारा किया गया आंदोलन के बारे में बताएं।।और अन्य उपस्थित अतिथियों ने जनजातियों के संघर्ष,त्याग, बलिदान को याद किए।। महाविद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा कर्मा ददरिया सुबह और छत्तीसगढ़ी लोक नृत्य प्रस्तुत किया जो बहुत मनमोहक था। कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करने वाले राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के स्वयंसेवक और विद्यार्थियों उपस्थित हुए अनामिका, राधेश्याम,अंकित, नागेश्वर,गरिमा,नितेश,वर्षा, खुशब,नेहा, निकिता तनूजा, ईश्वरी,खिलेश्वर,हेमंत मुकेश, धनंजय,गौतम, सूर्यप्रकाश इत्यादि और कार्यक्रम का मन संचालन प्रो. मुन्ना सिदार राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई के कार्यक्रम अधिकारी एवं कार्यक्रम के संयोजक द्वारा किया गया। महाविद्यालय के प्राध्यापक गण डॉ अमित कुमार तिवारी, प्रो.आशीष दुबे, श्री अमन गढ़ेवाल , डॉ जीवन खूंटे, श्री संतराम पटेल, श्रीमती सुनीता कसेर, श्रीमती कविता कश्यप,सुश्री कुसमिला कुजूर सहित कार्यालयीन स्टॉप मनोज राठौर, उपस्थित हुए।। प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र और मेडल द्वारा सम्मानित किया गया अंत में कार्यक्रम का आभार डॉक्टर अमित कुमार तिवारी सर जी ने किया और अध्यक्ष महोदय की अनुमति से कार्यक्रम संपन्न किया गया।।